Wednesday, July 15, 2009

बिहार में बाढ़ पीड़ितों के बीच लगातार मेडिकल कैम्प जारी

बिहार में बाढ़ के प्रलय का लगभग साल बीतने चला फिर भी पीड़ितों के दुख कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। अभी दो हफ्ता पहले से बिहार में भीषण धूप और गर्मी के चलते लू चल रही है। उसके बीच में ही मानसुन आया तापमान में आए भाड़ी परिर्वतन के चलते इस क्षेत्र में बिमारी की बाढ़ सी देखी जा रही है। वैसे भी जो लोग इस क्षेत्र में कुछ स्थायी कुछ खतरनाक जानलेवा रोगों से पूर्व में या हाल में ग्रसीत हुए हैं वह भी अपना इलाज आय के सारे श्रोत बंद होने के कारण नहीं करा पा रहे हैं। इन्हीं बातों का अंदाजा एड बिहार को पहले से था। चुकिं बाढ़ के शुरूआती दिनों से ही एड बिहार इस क्षेत्र में अपना सेवा लगातार दे रहा है। इसी के मद्देनजर धर्मेन्द्र जी के साथ मैं और हमारे कुछ सार्थियों ने अप्रैल के अंतिम सप्ताह में भविष्य के इस खतरे से निपटने के लिए बैठक कर योजना बनाई। धर्मेन्द्र जी ने दो दिन बाद ही हमलोगों के यु॰ एस॰ए॰ के॰ चिकित्सकों के टीम को जुलाई के प्रथम सप्ताह में इस क्षेत्र में आने की बात बताई। फिर हमलोगों ने देर किए बिना चिकित्सकों के इस दल के प्रोग्राम के मुताबिक 6 जुलाई से 13 जुलाई तक का कार्यक्रम आवश्यकता अनुसार अपने क्षेत्र में तय कर अपने स्वयं सेवकों के माध्यम से आमलोगों को सूचना कर दी। अब यु0एस0ए0 के चिकित्सकों के सात सदसीय दल पांच जुलाई के देर शाम तक कोशी क्षेत्र के एड कार्यालय सहरसा पहुंच चुकी थी। 6 जुलाई से तय कार्यक्रम के अनुसार हमलोग मेडिकल कैम्प मधेपुरा जिला के आलमनगर के केशोपुर गांव में शुरू कर दिया पहले दिन खराब मौसम और चिकित्सकों के भारी थकान के बावजूद थोड़ा देर से सही लेकिन कैम्प पर 2 बजे से अपना कार्यशुरू कर दिया। जबकि वहां सूचना के अनुसार 9 बजे दिन से ही सैकड़ों मरीज अपने सहयोगियों के साथ इंतजार कर रहे थे। खैर इलाज का काम शुरू हुआ और पहला ही जिस मरीज से चिकित्सकों का सामना हुआ वह सिंगहार के बबलू कुमार जो 18 वर्ष का बेहद गरीब, मजबूर मरनासन हालत में खटिया पे टंग कर आया था। पिछले साल भर से बीमार चल रहा था। लेकिन इलाज के बगैर एक माह से उसका पुरा शरीर जीर्ण- शीर्ण हो गया। पेट काफी फुल चुका था चकित्सकों ने चेकअप के बाद पेट में गोला होने और उस गोला के द्वारा लीवर को डैमेज कर देने की बात बताई। अब उसके सामने मौत ही एक रास्ता बचा है। मौसम के चलते इस इलाके में आमलोग सर्दी, खांसी, बुखार, बदन दर्द, मलेरिया, दस्त, डिहाईड्रेशन, खाज-खुजली से परेशानी का इलाज कराए। वहीं कुछ लोग मोतियाबिन्द और गठिया बीमारी लेकर आए जिसे चिकित्सकों ने उचित सलाह दी। धनिक शर्मा 25 वर्ष का नौजवान गठिया के चलते झुक सा गया। लेकिन लाचारी के चलते इलाज नहीं करा सका। आज कुल सौ मरीज देखे गए जिसमें 40 का रिजस्ट्रेशन कराना संभव हुआ। समय ज्यादा लगने के चलते लोग जल्दी-जल्दी दिखाकर दूर गांव वापस जाना चाह रहे थे। चिकित्सकों का दल का नेतृत्व प्रो0 डाॅ0 जुहारा मुसर्रफ कर रही हैं जबकि उनके साथ डाक्टर शीतल पटेल, काॅर्डिनेशन का काम कर रही हैं। दल में शामिल डाक्टर माॅर्गेन फाॅगर्ड, डा0 चलेसिया चुंग, डा0 राधिका सूद, डा0 जेसिका विश एवं डा0 कनेस्तीनी यूव हैं। जो मरीजों का और उनके सहयोगियों के साथ बेहतर इलाज एवं सहयोग कर रही हैं। 7 जुलाई को दूसरे दिन कोशोपुर में ही 300 मरीज देखे गए जिसमें भीड़ और दवाब के चलते 157 मरीजों का ही रजिस्ट्रेशन संभव हुआ। चिकित्सक भी एक मरीज पर कम से कम 20 से 25 मीनट समय देते हैं जिसके चलते आए हुए सभी मरीजों को देखना संभव नहीं हो पाता है। कल की ही भाॅति रोगों के ट्रेंड आज भी मिले। जिनका इलाज चिकित्सकों ने करते हुए दवा दी और गंभीर रोगों के मरीजों को उचित सलाह दी। 8 जुलाई को यानि तीसरा दिन भी कोशोपुर के कैम्प में लगभग 425 मरीज देखे गए आज चुकिं यहां अतिम दिन था इसीलिए मरीजों का भीड़ हजारों में थी। लेकिन रजिस्टेªशन करना 297 संभव हुआ। अन्य दिन की तरह ही आज भी मौसमी रोग यथावत था जिसका इलाज चिकित्सकों ने किया। आज फिर दो ऐसे रोगी आए जो इस कैम्प से इलाज कराए बगैर लौट गए। राधा देवी सोनवर्षा जो टीवी और दम्मा से पीड़ित होकर मौत के कगार पर पहुंच चुकी थी। इलाज कराने से असमर्थ रहने के कारण उसे हम कैम्प से आशा बंधी थी। दूसरी कोशोपुर की गुड़िया कुमारी 12 वर्षीय जिसका आंख खराब है गरीबी के कारण उसके मां बाप इलाज नहीं करा सके। आज यह बच्ची अंधी होने के हालत में हैं। सभी चिकित्सकों ने काफी मेहनत कर मरीजों की इलाज की और दवा दी। सबों से प्यार से बातें की। परेशानी को नजर अंदाज किया। भूख प्यास की चिंता नहीं की। जब मैने कुछ टिप्पणी मांगा तो बोली सभी मरीज उन्हें काफी सहयोग और सभी मरीज एवं उनके सहयोगी अच्छे भले इंसान हैं। यहां बिमारी का मुख्य कारण गंदा पानी का पिना है। अगर एड इंडिया यहां के पानी कोे बालू और कंक्रिट से फिलटर्ड करने का योजना करंे तो बिमारी काफी कुछ कम हो जायेगा। 9 जुलाई हमारे चिकित्सकांे का दल आज के दिन प्रलय का गवाह बने कुशहा बांध देखने गयी। काफी खराब सड़कांे से लंबी दूरी तय कर पहुँचना उनलोगो के लिए काफी मुश्किल था। लेकिन हर मुश्किलांे का मुकाबला करते हुए ये लोग आखीर वहां पहुँच ही गयी। भीम नगर बैरेज के जड़जड़ हालत को देख कर बरबस बोल पड़ी की बाढ़ को बिहार मंे आने का निमंत्रण लगता है जैसे फिर मिल चुका है। कुशहा से थोड़ा अलग बांध की दयनीय हालत से भी काफी चिन्तित होकर चिकित्सकांे के दल ने कहा कि सरकार एवं जनता को इसके स्थायी समाधान के लिए सचेतन प्रयास करने होगें। जिसमंे स्वयं सेवी संस्थाआंे का अहम राॅल हो सकता है। आज शाम तक सहरसा लौटते-लौटते पिछले तीन दिन का उमस भड़ी गर्मी और बीच-बीच मंे बारीश के चलते चिकित्सकांे का बीमार होना शुरू हो गया। दो चिकित्सक बीमार हो चुके थे, फिर भी अगले सुबह हम लोगांे के मना करने के बाद भी कैंप को जारी रखने के लिए चल पड़ी। उनका हिम्मत, सेवा भावना और समपर्ण हमारे और आम लोगांे के लिए प्रेरणादायक है। 10 जुलाई को मधेपुरा प्रखंड के बुधमा मंे मेडिकल कैंप लगा, जहां बायरल बुखार से पिड़ित दो चिकित्सकांे ने भी हिस्सा लिया। 450 रोगी जो इलाके के मौसमी रोगांे के सामान्य रोगी थे का ईलाज इन लोगांे ने किया, लेकिन आज भी रजिस्ट्रेशन 300 ही हो पाया। 11 जुलाई को मधेपुरा प्रखंड के भान टेक्थी मंे मेडिकल कैंप चला, जहां 600 मरीज देखे जा सकंे। भीड़ काफी होने के कारण रजिस्ट्रेशन मात्र 300 का हो पाया। आज उमस और गर्मी काफी बढ़ चुकी थी। भीड़ से घिरे होने के चलते आज और दो चिकित्सक वायरल बुखार के चपेट मंे आ चुके थें और शाम तक सहरसा कार्यालय वापस आते-आते सात मंे से छः चिकित्सक बीमार घोषित हो चुके थे। तब अन्ततः हमने धर्मेन्द्र जी से राय कर आवश्यक प्ररामर्श के बाद अगले 13 जुलाई तक के लिए सभी कैम्पांे को रद्द करने का निर्णय लिया। 12 जुलाई को एक दिन का आराम और कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम मंे शामिल कराते हुए उन्हें 13 जुलाई को स्वदेश वापस के लिए रवाना कर दिया। लेकिन चिकित्सकांे के इस दल ने अपने मुल्क से विपरीत यहां के मौसम से जुझते हुए जिस तरह गरीब व लाचार लोगांे के रोग के ईलाज करनंे अपनी गहरी दिलचस्पी दिखाई। वह वाकई अविस्मरणीय रहेगा। एड बिहार के बाल कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम 12 जुलाई को मधेपुरा प्रखंड के भान टेकथी उच्च विद्यालय पर आज किसी बड़े उत्सव का माहोल था। सुबह से हजारो लोगांे की भीड़ हर तरफ से इसी विद्यालय की ओर पहुँच रही थी। उनके आकर्षण का केन्द्र था वहां स्कूली बच्चांे द्वारा अपने कला का प्रदर्शन। सचमुच इस कला के जड़िये बच्चे अपने छोटे-छोटे नाटक मंे प्रस्तुत कर रहे थे कि बाढ़ का प्रलय और उसमंे सरकार और प्रशासन की भूमिका जिसमंे दिखाया गया कि किस तरह उस त्राहिमाम हालात मंे प्रशासन जन सेवा के बदले लूट सेवा को तब्बजो दे रहे थे। वहीं स्वयं सेवी संस्थाआंे द्वारा किये गये निःस्वार्थ और अविस्मरणीय राहत व बचाव कार्य को रेखांकित कर रहे थे। बच्चांे का यह समूह भान टेकथी और बगलगीर गांव बालम गढ़िया मंे लगातार अपने शिक्षकांे, अभिभावकांे और वहां काम कर रहे पिछले कुछ महिनांे से एड कार्यकर्ताओं के देख-रेख मंे हर संभव शैक्षणिक माहोल को बढ़ाते हुए बच्चांे के बहुआयामी विकास के लिए विभिन्न तरह के क्यीज, नृतय एवं गीत प्रतियोगिता कराते रहते हैं। जिसमंे एड इंडिया का भूमिका काफी महत्वपूर्ण रहता है। बच्चांे के प्रोत्साहन के लिए हमारे एड की ओर से उन्हंे कभी स्कूल बैग, कभी काॅपी कलम कुछ ना कुछ पढ़ने-लिखने का सामान दिया जाता रहा है। आज के लघु नाटक डाॅन्स एवं गांन प्रतियोगिता मंे हमने अपने संस्था के माध्यम से उन बच्चांे कें कार्यक्रम को यादगार बनाने के लिए मोमेन्टो एवं मैडल का वितरण किया। यह वितरण डाॅ0 जुहारा मुसर्रफ, डाॅ0 मौरगेन फागर्ड एवं डाॅ0 सीतल पटेल के हाथांे हुआ। सही मंे इन दोनांे गांवो के बच्चांे मंे पढ़ने-लिखने से लेकर विभिन्न प्रतिभाओं को खुद मंे विकशित करने की होड़ लगी हुई है। अब तो लोग चर्चा कर रहें हैं कि यहां के ये स्कूली बच्चे एड इंडिया, बिहार के बच्चे के रूप मंे जाने जाते हैं। तभी तो अब यहां के स्कूली बच्चों पर यूनिसेफ और गुन्ज जैसे बड़ी एन0जी0ओ0 का भी ध्यान आया है।

2. एड इंडिया के स्वरोजगार अभियान के तहत रिक्सा-ढ़ेला वितरण एवं पुर्नवास योजना के तहत 20 घरों का वितरण। यह कहानी है बिहार के कोशी पिड़ित उन गरीबांे और मजबूरों की जिनके जिंदगी को आगे बढ़ाने के सारे श्रोत उनके पिछले साल कोशी ने छिन ली। हम यहां चर्चा कर रहे हैं उन बेवशांे की जो पिछले एक साल से खुले आसमान के नीचे तेज धुप और वर्षा मंे जिल्लत की जिंदगी जिने को विवश हैं। हम सब जानते हैं कि पिछले साल जब बिहार मंे कोशी के प्रलयंकारी बाढ़ ने तबाही मचायी तो तत्काल जो जान-माल की क्षति हुई सो तो हुई ही लेकिन असली तबाही की शुरूआत भी इस बाढ़ पिड़ित इलाके मंे यहीं से शुरू हो गया था जो रूकने का नाम ही नहीं ले रहा। लोगांे के सामने रोजगार के सारे अवसर समाप्त हो गया। ज्यादातर खेत रेतिली हो गयी। कुछ बची भी है तो गरीबांे को खेत मंे काम करने के उपकरण नहीं हैं सभी बह गयें और खरीदने की हालत भी उनकी नहीं हैं। विभिन्न प्रकार के मजदूरी के दक्ष्य लोगांे के सामान बह चुके। ऐसे मंे उनके सारे रोजगार समाप्त हो चुके हैं। रिक्शा-ठेला चालकांे के रिक्शा-ठेला बहने से उनके सामने बेरोजगारी और भूख मूह बाये खरी है। ऐसे मंे धर्मेन्द्र जी के साथ मिल कर हमलोग अपने एड के बढ़े हुए कार्यकत्र्ताआंे के साथ बात-चीत कर जिन इलाके मंे हमारा राहत व बचाव कार्य ज्यादा चला, उन इलाके मंे कुछ पूर्व के पेशेवर या उनसे बात कर सक्षम लोगांे को चिन्हित कर उन्हंे रिक्शा व ठेला उपलब्ध कराकर उन्हंे स्वरोजगार मुहैया कराने का विचार किया। इसी रोशनी मंे पिछले जनवरी, फरवरी महिनंे मंे धर्मेन्द्र जी अपने वरिय साथियांे के साथ राय कर इस काम को आगे बढ़ाने की बात कही और हमलोग मधेपुरा सहरसा और खगड़िया के बाढ़ प्रभावित इलाके मंे लोगांे को चिन्हित कर मई महिनंे से अबतक 25 लोगो को रिक्शा और 5 को ठेला उपलब्ध करा चुके हैं। इन्हीं रिक्शा लेने वाले लोगांे मंे से मधेपुरा के आलम नगर के दो रिक्शा चालकांे से 12 जुलाई को विभिन्न प्रोग्राम के तहत मेरी मुलाकात हुई। उनमंे सोनवर्षा-आलमनगर निवासी पिगल मंडल जो दो बच्चांे के पिता हैं जिन्हंे हमारे एड की ओर से रिक्शा दिया गया ने बताया कि बाढ़ से पहले मैं किराये का रिक्शा खिचता था। और किसी तरह परिवार चला पाता था। लेकिन आज आप लोगांे के द्वारा दिये गये रिक्शा से स्वत्रंत होकर कमा रहा हूँ। किसी भी तरह 4000 से 4500 तक के बीच प्रति माह मजदूरी कमा लेता हूँ। दोनों बच्चों को पढ़ाने लिखाने से लेकर अच्छे से अपने परिवार का भी परवरिश कर रहा हूँ फिर भी 1000 से 1200 के बीच आय का एक हिस्सा बचा भी लेता हूँ। आज मेरी दुनिया ही बदली हुई लगती है। मैं सोचता हूँ कि एक साल बाद बचत के पैसे से कुछ खेती-बारी की जमीन किराया पर लेकर अपनी स्थिति को और ठीक करूँ, जिससे हमारे बच्चे और हमे भविष्य मंे आगे बढ़ने मंे ज्यादा मदद मिलेगा। दूसरे आदमी मिले नागेश्वर राम, सोनवर्षा गोइठ बस्ती, आलमनगर निवासी, अधेर उर्म का यह आदमी 7 बच्चांे के साथ यानी कुल 9 आदमी के कुल बड़े परिवार को पहले किराया पर रिक्शा लेकर उससे कमाकर किसी तरह चलाता था। जिससे वह काफी परेशानी और निराशा भरी जिंदगी जिने को विवश था। इन्हंे भी एड से रिक्शा मिला। आज अपने रिक्शा के साथ काफी स्वाभिमानी और खुश नजर आया। बताया किसी भी तरह 4000 हजार रूपये प्रतिमाह के लगभग कमा ही लेता हूँ। दो बच्चांे को पढ़ाने और लम्बे परिवार के भरन-पोषण के बाद भी 500 से 600 रूपये प्रतिमाह बचत कर पाता हूँ। परिवार को आगे और सुदृढ़ करने के लिए जब कुछ पैसे जमा हो जायंेगे तो बकरी पालन का काम शुरू करूँगा। काफी हिम्मत से बोला अब हम दो बच्चे को आसानी से पढ़ा सकेंगें।

3. आलम नगर प्रखंड मंे ही एक छोटा सा गांव है महमूदा जिसके एक किनारे मंे कुछ गरीब लोग रहते हैं। जो तीयर और मारकण्डे जाति से आते हैं। पिछले साल के विनाशकारी बाढ़ ने इनका झोपड़ी बहा ले गया। तब से आज तक यहां के 20 परिवारांे के पास झोपड़ी खरी करने की भी स्थिति नहीं हो पा रही थी। सरकार और प्रशासन भी इनके तरफ से उदासीन थी। चूँकि इनका कसूर था कि वह गरीब तो थें लेकिन दलित नहीं थे। बिहार सरकार के बी0पी0एल0 सूची मंे नाम लिखवाने मंे भी वे सक्षम नहीं थे। ऐसे मंे वह मजबूर थे खुले आसमान के नीचे जिंदगी बसर करने के। इस इलाके मंे हमलोग काम कर ही रहें थे। हमारे स्थानीय बुजुर्ग कार्यकर्ता कमलेश्वरी साह ने पिछले फरवरी महिने मंे धर्मेन्द्र जी और हमसे उनलोगांे से उन्हीं के गांव मंे मिलवाया। काफी कारूणिक दृश्य था, तत्काल हीं धर्मेन्द्र जी से मैनें कहा कुछ उपाय करना चाहिए। धर्मेन्द्र जी की सहमती थी उन्होंने तत्काल अपने वरिष्ट साथी से चर्चा कर यहां 20 विस्थापितों के घरों को बनवाने के लिए आवश्यक धन उन्हंे मुहैया करा दिया, जिसे हमारे एक स्थानीय कार्यकर्ता कमलेश्वरी साह, फुल टाईमर विकाश कुमार और सुनील कुमार लगातार कैम्प कर मेरे देख-रेख और धर्मेन्द्र जी के निर्देशन मंे बनवा दिया। 22 जुलाई को हमलोगांे को उस पुर्नवासित 20 परिवार की ओर से वहां पहुँचने का दावत आया। मैं धर्मेन्द्र जी और अजीत जी महमुदा गांव पहुँचे। वहां का माहौल काफी खुशनुमा था। उस बिसांे परिवार के प्रमुख महेन्द्र चैधरी एवं रामविलास चैधरी जो थोड़ा पढ़े-लिखंे हंै, धर्मेन्द्र जी से उन घरों का फिता कटवा कर उद्घाटन कराया और हमलोगांे को विश्वास दिलाया कि हम सभी अपने बच्चांे को स्कूल भेजंेगें। स्कूल से वापस घर आने पर महेन्द्र चैधरी ने कहा कि हम उन सभी बच्चांे को निःशुल्क शिक्षा दंेगें।


---Sanjay, AID INDIA, BIHAR

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