Monday, February 1, 2010

Work by Dharmendra and Sanjay Kumar from Bihar regarding flood zone.

एड इण्डिया बिहार चेप्टर द्वारा स्वरोजगार अभियान के तहत् नये रिक्शा/ठेला चालकों के चयन के लिए किये गये बैठक का रिपोर्ट
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एड इण्डिया बिहार चेप्टर के तत्वाधान में 30 जनवरी 2010 को खगड़िया जिला के खगड़िया प्रखंड अन्तर्गत माड़र गांव में स्वरोजगार यात्रा अभियान के तहत् रिक्शा/ठेला के लाभार्थीयों के चयन को अंतिम रूप देने हेतु बैठक हुई। जिसमें सुपौल जिला के बसंतपुर प्रखंड के रतनपुरा और सातन पट्टी के दो चयनित गरीब बेरोजगार हिस्सा ले रहे थे। बाकि गरीब बेरोजगार (चयनित लाभार्थी खगड़िया  प्रखंड के माड़र, सबलपुर और चन्द्रनगर के थे। बैठक में सभी लाभार्थियों को एड इण्डिया द्वारा स्वरोजगार उपलब्ध कराने हेतु सहयोग और उसके आधार पर उसके बाल बच्चों की पढ़ाने-लिखाने के तरफ आगे बढ़ने जैसे विषयों पर चर्चा की गयी। चयन का काम पुरा कर एग्रीमेन्ट का काम शुरू कर दिया गया। सभी चयनित लाथार्थियों को फरबरी माह के अंत तक रिक्शा/ठेला उपलब्ध करा दिया जाएगा। जबकि सुपौल के दोनों लाभार्थी शिवनारायण महतो ओर कमल राम को रिक्सा सुपूर्द कर दिया गया है।
              इसी बैठक में खगड़िया शहर के तीन रिक्सा चालक और एक ठेला चालक जिन्हें पिछले दिन इसी अभियान के तहत् रिक्सा/ठेला दिया गया था। उन्हें भी बुलाकर उनके आय और उनके जीवन शैली की समीक्षा की गयी । जिसमें सभी ने अपने आय और व्यय के आधार पर अपने दूसरे कार्य और अनुभव को दिल खोलकर नये लोगों को बताया जो उनके लिए काफी प्रेरणादायक था। उनके स्वरोजगार की कहानी क्रमशः निम्न है:-
(1)              राजीव शर्मा माड़र निवासी ने बताया कि जबसे मुझे रिक्सा मिला मेरी दैनिक औसत आय 150 रूपये है। मेरे बच्चे अभी पढ़ने लायक नहीं है ऐसी स्थिति में घर-परिवार चलाकर थोड़ा बहुत पैसा बटाई के खेती में लगाता हूँ और भविष्य को ध्यान में रखकर 500/ रूपये प्रतिमाह एल0 आई0 सी0 में जमा करता हूँ।
(2)              विद्यानंद वर्मा चन्द्रनगर निवासी बताते हैं कि मुझे रिक्सा मिलने के बाद से मैं अपनी बटाई बाली खेतों की सब्जी लेकर सुबह बाजार पहूंचाता हूँ जिससे किराये की बचत होती है और मेरी हर दिन की पहली कमाई यहीं से श्ुारू होती है। सब्जी पहूंचाने के बाद अलग से 100 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से कमा लेता हूँ। यह आमद बढ़ने के बाद पैसे की तंगी से मेरा एक बेटा मैट्रिक के बाद पढ़ाई छोड दिया था वह फिर से इन्टर में नामांकन कराकर आगे की पढ़ाई शुरू कर दिया जो मुझे काफी अच्छा लगता है।
(3)              हरिबोल वर्मा - चन्द्रनगर कहते हैं एड इण्डिया द्वारा दिये गए रिक्सा से तो मेरा जीवन बंधक से आजाद हो गया। मैं गरीब आदमी एक साल पूर्व भाड़े का रिक्सा चलाता था उसी दौरान मैं गंभीर रूप से दुर्घटनाग्रस्त हो गया। ईलाज में महाजन से 10000.00 (दस हजार) रूपये कर्ज लेना पड़ा। ठीक होने पर पुनः भाड़े का रिक्सा चलाना शुरू किया लेकिन उससे रिक्सा मालिक का किराया और महाजन का पैसा चुकता करना असंभव था। लेकिन अब मैं अपने रिक्सा से कमाकर महाजन का पैसा आधा वापस कर चुका हूँ। आजादी महसूस करता हूँ।
(4)              मो0 खुशबुउद्दीन - माड़र निवासी ने कहा मुझे ठेला से प्रतिमाह 3000/रूपये लगभग कमाई होता है। मेरे उपर बच्चों की जिम्मेवारी अभी नहीं आई है । इसलिए अभी खा पीकर जो बचता है उस पैसे से धीरे-धीरे ईट खरीद रहा हूँ ताकि भविष्य में घर बना सकूंगा।
                            इस अनुभव को देखने से साफ झलकता है कि एड इण्डिया बिहार चेप्टर ने स्वरोजगार अभियान के तहत् जो समझ बनाया था वह विल्कुल फलीभूत हुआ है।
 


 
संजय कुमार
सदस्य कोर टीम
ंपक ठपींत
क्ंजम. 01.02.010
 
             
 
 
 


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Priya Ranjan, Practicing Ph.D. in Internet Technologies

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